देहाती लड़का (कहानी) प्रतियोगिता हेतु14-Mar-2024
दिनांक -14,0 3, 2024 दिवस- गुरुवार प्रदत्त विषय -देहाती लड़का (कहानी) प्रतियोगिता हेतु
यदि हम भारतवर्ष की बात करें तो भारतवर्ष की आत्मा देहात अर्थात् गांँवों में निवास करती है। एक समय था जब गांँव में रहना आन, मान, शान और प्रतिष्ठा का सूचक था। किंतु जैसे-जैसे हम आधुनिक होते गए और औद्योगीकरण की तरफ़ बढ़ते गए वैसे-वैसे गांँव में रहना, देहाती कहलाना हमारे लिए शर्म की बात होने लगी। हम शहरी बनने की दौड़ में शामिल होने लगे।
किंतु, आज परिस्थितियांँ पुनः परिवर्तित हो रही हैं, लोग शहरों से गांँव की तरफ़ पलायन करना चाह रहे हैं। क्योंकि शहरों की भाग दौड़ भरी ज़िंदगी, पत्थर के घरों में रहने वाले पत्थर दिल इंसान से लोग अब निजात पाना चाहते हैं।अब लोग शांति की तलाश में पुनः गांँव की तरफ़ उन्मुख हो रहे हैं। कुछ ऐसे ही कहानी है सुरेश की। सुरेश जो की एक छोटे से गांँव के उच्च वर्ग के परिवार का लड़का था, उसने कक्षा दसवीं तक की पढ़ाई गांँव में किया उसके बाद इंटरमीडिएट, बी.टेक. की पढ़ाई शहर से किया। वह गांँव से शहर आया था तो अपनी आंँखों में ढेर सारे सपने लेकर आया था।
बी. टेक. करने के बाद शहर में अच्छी नौकरी भी ज्वाइन कर लिया। शहर उसे समृद्धि, संपन्नता तो दे रहा था किंतु गांँव वाला प्रेम, हंँसी- ठिठोली, मौज- मस्ती कहीं गुम हो गई थी। जिससे वह अनवरत तलाश रहा था। शहर उसे ऐश्वर्या तो दे रहा था किंतु सुख-शांति नहीं दे रहा था। तभी कोरोना नामक दैत्य का आगमन हुआ जिसने अच्छे- अच्छों को हिलाकर रख दिया।अब सुरेश का मन हमेशा बेचैन रहता था। अंततः उसने गांँव की तरफ़ पलायन करने का निर्णय लिया। और होली की छुट्टियों में गांँव गया तो फिर शहर की तरफ़ मुड़कर नहीं देखा। क्योंकि, गांँव में उसके पिताजी के नाम पर 20 बीगहे जमीन थी। उसने दो बीगहे ज़मीन में एक फैक्ट्री बिठाया। फैक्ट्री क्या लगी गांँव में तो मानो जान ही आ गई। जो गांँव के लोग नौकरी-पेशे की तलाश में शहर जाते थे। ₹2 की चीज ₹4 में खरीदने , केमिकल वाली सब्जियांँ, फ़ल, दूध खरीदने पर मज़बूर थे वो लोग गांँव में ही नौकरी करने लगे। ऐसा करने से शहर जाकर जो उनके रहने, खाने का अलग से ख़र्च गिरता था वह भी बचने लगा और उन्हें खाने- पीने की हर वस्तुएंँ शुद्ध एवं सस्ती मिलती थीं। इस तरह फैक्ट्री के रूप में गांँव में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, संपन्नता, मान- सम्मान, हंँसी- ठिठोली, रौनक ने विस्तार पा लिया। लोग सुखी, संपन्न, समृद्धिशाली, शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे।
इस तरह सुरेश एक शहरी लड़का कहलाने की ज़गह एक देहाती लड़का कहलाना अधिक उत्तम समझा। क्योंकि इस देहाती लड़के में सभ्यता, संस्कृति, सुख, प्यार, सौहार्द ,देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी जो आज के युवको में विरले ही देखने को मिल रही है।
यदि सुरेश की तरह ही प्रत्येक गांँव में दो चार, लड़के भी देहाती लड़का कहलाने में सम्मान महसूस करने लगें तो आज जो गांँव से शहरों की तरफ़ पलायन हो रहा है और उस पलायन के साथ ही साथ हमारी भारतीय संस्कृति- सभ्यता सब कुछ ख़त्म होने के कगार पर आ गई है उसे बचाया जा सकता है।
सीख-भारतीय गांँवों में भारत की आत्मा, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार बसते हैं। अतः देहाती कहलाने में हमें शर्म नहीं महसूस करना चाहिए। वरन् देहात को पुष्पित, पल्लवित, विकसित करने में अपनी अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
16-Mar-2024 09:02 PM
शानदार प्रस्तुति
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Abhinav ji
15-Mar-2024 09:29 AM
Nice👍
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Punam verma
15-Mar-2024 09:06 AM
Nice👍
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